

भारतीय संस्कृति व परंपरा समाज को उत्सवपर्व ने से परस्पर स्नेहप्रेम के सूत्र पिरोने में महती भूमिका निभाई है, इसी तारतम्य में तीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पवित्र मिलन और अटूट प्रेम को समर्पित है।
मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए १०८ वर्षों के कठोर तप किया था, तब शिव जी ने उनकी भक्ति से खुश होकर उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में आत्मसात किया, इसलिए तीज पर्व को सौभाग्य और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। फलस्वरूप महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और पारिवारिक खुशहाली के लिए तीज व्रत रखती हैं। जिसमें महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत माता पार्वती के समान ही अखंड सौभाग्य की कामना के लिए होता है तथा
स्त्रियाँ हरे रंग के वस्त्र, चूड़ियाँ, बिंदी और मेहंदी आदि से सजती संवरती हैं क्योंकि हरे रंग को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है तो वहीं इस पर्व को प्रकृति और सावन की हरियाली से जोड़कर आनंद उत्सव के रूप में मनाते हुए झूले पर झूलती हैं और पारंपरिक तीज गीत गाती हैं। कुल मिलाकर इस तीज पर्व नारी के भावनाओं, प्रेम, सौंदर्य और सामाजिक स्थिति की झलक होती है। इन पलों में तीज माता अर्थात गौरी (पार्वती) की विशेष पूजा होती है और तीज व्रत कथा का श्रवण करती हैं।
एक खास बात यह है कि स्थानीय रिवाज के अनुसार इस पर्व में शादी शुदा महिलाएं अपने मायके आकर व्रत पूजन करती हैं और अपने सुहाग की सलामती की कामना करती हैं तो वहीं कुंवारी कन्याओं द्वारा अच्छा पति पाने की कामना से व्रत धारण करती हैं।
तीज का आध्यात्मिक महत्व है कि यह व्रत आत्म-नियंत्रण, संयम, भक्तिप्रेम और नारी शक्ति के गौरव का प्रतीक है।भारतीय पंचांग के अनुसार इस साल अखंड सौभाग्य के कामना का पर्व हरतालिका तीज व्रत पर कल २६ अगस्त २०२५ को महादेव और माता पावर्ती की विधि-विधान से पूजा करने के लिए सुहागिनों को प्रात:काल ०५.५६ बजे से ०८.३१ बजे तक का शुभ मुहूर्त है फलस्वरूप स्थानीय महिलाएं सुविधानुसार अपने अपने मायके पहुंचकर तीज पर्व को लेकर उत्साहित हैं ।निश्चित रूप से हमारी परंपराएं हमेंबापने परिवारसमाज के रिश्तों को जीवंत बनाए रखने में सहायक होती हैं।