

सक्ति से राम कुमार मनहर 9977109155 की रिपोर्टें
ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष अमावस्या पर रखा जाता है निर्जला व्रत
सक्ति । ज्येष्ठ मास ष्ण पक्ष अमावस्या तिथि पर 26 मई सोमवार को सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की दीर्घायु की कामना कर वट सावित्री का व्रत रखी और दोपहर में वट-पीपल की पूजा कर पति के दीर्घायु की कामना की। वट सावित्री व्रत तीन दिन का होता है। हालांकि यहां एक ही दिन व्रत किया जाता है। इस व्रत में वट पीपल का पूजन का विधान है। इस व्रत को ज्येष्ठ ष्ण त्रयोदशी से अमावस्या को किया गया। व्रती महिलाएं पूजन सामग्री, जल, मौली, रोली, चावल गुड़ भीगे चने धूप दीप, सुहाग की सामग्री कधा सूत से पूजन करती हैं। वट सावित्री की कथा के अनुसार अश्वपति नाम के राजा के सन्तान नहीं थे। राजा अश्वपति ने देवी की आराधना की, जिससे वे प्रसन्ना हुई और राजा की लड़की रूप में पैदा हुई। उसका नाम सावित्री रखा गया।

सावित्री ने अपने मन से राजा धु्रमत्सेन के एक मात्र पुत्र सत्यवान से विवाह करना स्वीकार किया, लेकिन सत्यावन अल्पायु था। सावित्री ने अपने वरण किए पति सत्यवान से विवाह के एक वर्ष बाद नियत समय पर सत्यवान जंगल लकड़ी लेने जाने को तैयार हुआ। सावित्री भी साथ हो चली। जंगल में लकड़ी काटते समय सिरदर्द हुआ और सत्यवान सावित्री की गोद में सिर रखकर सो गया। सावित्री ने देखा यमराज सत्यवान की ओर बढ़ रहे हैं और सत्यवान के जीव लेकर जाने लगे। सावित्री ने यमराज का पीछा नहीं छोड़ा। यमराज ने सावित्री की पति भक्ति देखकर चार वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने अपने अन्धे सास-ससुर को दिखाई देने का वर मांगा।

दूसरे वर में राजा धू्रमसेन का छिना राज्य, तीसरे वर में सावित्री ने अपने पितृकुल की भलाई के लिए सौ भाई होने का वरदान मांगा, चौथे वर में सावित्री ने सत्यवान से सौ पुत्र होने का वर मांगा। यमराज ने सावित्री की पति भक्ति देखकर वरदान दिया और सावित्री को लौट जाने को कहा। तब सावित्री ने कहा कि आप सत्यवान को लेकर जा रहे हैं, तो मेरा सत्यवान से पुत्र कैसे होगा।

यमराज ने सावित्री के पति सत्यवान को पुनः जीवित कर सावित्री को अखंड सौभाग्यवती का वर दिया। सावित्री ने अपने युक्तिपूर्ण चतुराई से यमराज से सत्यवान की प्राण की रक्षा की। पति की शतायु की कामना से

महिलाएं वट सावित्री की पूजा करती हैं। बेलादुला के डोंगिया पारा मे ग्राम पंचायत सरपंच महिला भी मौके पर पहुचे
परिक्रमा लगाया जाता है
कई महिलाएं तीन दिनों तक वट वृक्ष की जड़ों और जल पर रहती हैं। फिर, वे बरगद के पेड़ के नीचे जल, चावल और फूलों के साथ सती सावित्री पूजा करती हैं। पूजा के बाद, वे प्रार्थना करते हुए पीले या लाल रंग के धागे बांधकर बरगद के पेड़ के चारों ओर परिक्रमा लगाती हैं और वट वृक्ष को धागे से बांधकर पति की लंबी

आयु के लिए वरदान मांगेंगी। यह पर्व उत्तर भारत में बड़े ही धूमधाम, आस्था और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

